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प्लास्टिक कचरे से फैशनेबल कपड़े तैयार कर पिता-पुत्र ने खड़ी कर दी 100 करोड़ की कंपनी

इकोलाइन क्लोदिंग कपड़ों का एक ब्रांड है, जो बेकार पड़ी पीईटी बोतलों (polyethylene terephthalate) को फैशनेबल और टिकाऊ कपड़ों में बदल देता है।

इकोलाइन ब्रांड तब सुर्ख़ियों में आई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इस कंपनी द्वारा बनाई गई जैकेट को पहना। यह कंपनी तमिलनाडु में स्थित है।

के. शंकर और उनके बेटे सेंथिल शंकर (इकोलाइन के प्रबंध निदेशक) द्वारा इस कंपनी को चलाया जा रहा है। इस कंपनी ने प्लास्टिक के कचरें को इकठ्ठा कर उससे कपड़े जैसे कि जैकेट, टी-शर्ट, ब्लेजर बनाने का काम शुरू किया और धीरे-धीरे यह कंपनी सालाना 100 करोड़ रूपये का कारोबार करने लगी।

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Shree Renga Polymers and Ecoline Success Story in Hindi

इस आर्टिकल में हम आपको श्री रेंगा पॉलिमर और इकोलाइन की सफलता की कहानी (Shree Renga Polymers and Ecoline Success Story in Hindi) के बारे में बताएँगे।

हम आपको बताएँगे कि कैसे के. शंकर और उनके बेटे ने इस बिज़नेस को एक ब्रांड बनाया और इस बिज़नेस को चलाने के लिए किन-किन मुश्किल का सामना किया?

के शंकर कौन है?

के शंकर एक आईआईटीयन हैं। के शंकर पिछले तीन दशकों से विदेश में रहते थे और विदेश में उन्होंने बहुराष्ट्रीय कंपनियों के साथ सी-लेवल का काम किया हुआ है।

विदेश में रहते हुए उन्होंने प्लास्टिक के बढ़ते हुए खतरे का अंदाज़ा लगाया और वो इस खतरे को निपटने के दृष्टिकोण के साथ वे भारत लौटे। एक गंदी प्लास्टिक की बोतल को एक सुंदर परिधान में बदलने का के शंकर का सपना था।

साल 2008 में, के शंकर ने श्री रेंगा पॉलिमर (Shree Renga Polymers) की स्थापना की। उन्होंने टेक्सटाइल उद्योगों के लिए मशहूर शहर करूर में अपनी कंपनी का प्रोडक्शन हाउस शुरू किया।

pet बोतल रीसाइक्लिंग से टिकाऊ वस्त्रों को बनाने की इस पूरी प्रोसेस में जर्मन तकनीक का उपयोग किया जाता है। कंपनी आज भारत में pet बोतल रीसाइक्लिंग और टिकाऊ वस्त्रों में अग्रणी है।

साल 2018 में के शंकर को तमिलनाडु सरकार की ओर से “Best Entrepreneur of the Year” पुरस्कार का दिया जा चुका है। उन्होंने CII, करूर के अध्यक्ष के रूप में और नेटिव लीड, करूर के अध्यक्ष के रूप में भी कार्य किया है।

सेंथिल शंकर कौन है?

सेंथिल शंकर के शंकर का बेटा है। सेंथिल शंकर ने वेल्लोर इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी में से मैकेनिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई की है।

इसके बाद उन्होंने भारतीय प्रबंधन संस्थान (IIM), अहमदाबाद से उन्होंने MBA की डिग्री हांसिल की है। MBA की डिग्री हांसिल करने के बाद उन्होंने टीसीएस में जॉब की।

तीन साल टीसीएस में जॉब करने के बाद उन्होंने अपने पिता का बिज़नेस जॉइंट कर लिया। इकोलाइन बिज़नेस के साथ-साथ वह कई स्टार्टअप्स के एंजेल इन्वेस्टर भी हैं।

परेशानियों का करना पड़ा सामना

रेंगा पॉलिमर और इकोलाइन कंपनी शुरू करने से पहले के शंकर को कई मुश्किलों का सामना करना पड़ा। इस प्रोजेक्ट में कचरे के ढेर में से प्लास्टिक को अलग करना था, जो एक सबसे ज्यादा चुनौती वाला काम था।

क्योंकि के शंकर एक IITian थे और समाज में रहते हुए एक IITian को कचरा इकठा करना सबसे चुनौतीवाला काम था।

तमिलनाडु के विभिन्न क्षेत्रों से कचरा इकट्ठा करने के इस काम से के शंकर को काफी कुछ सहन करना पड़ा। उस समय सेंथिल स्कूल में ही थे और वो अपने पिता को यह संघर्ष करते हुए देखते थे।

जैसे ही सेंथिल ने अपनी इंजीनियरिंग की डिग्री पूरी की, शंकर चाहते थे कि उन्हें विदेश में एक आरामदायक नौकरी मिल जाए।

हालांकि सेंथिल अपने पिता की तरह अपना खुद का कुछ करना चाहते थे और साल 2015 में सेंथिल अपने पिता के संघर्षपूर्ण बिजनेस में शामिल हो गए।

सेंथिल ने एक इंटरव्यू में बताया था कि कोई भी निवेशक उनके बिजनेस में पैसा नहीं लगाना चाहता था क्योंकि उनके पास कोई स्थिर रेवन्यू मॉडल नहीं था। इसलिए उन्हें काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा लेकिन उन्होंने कभी भी हार नहीं मानी।

आखिर कार उनकी मेहनत रंग लाई और धीरे-धीरे लोग इस कंपनी की प्रोडक्ट को पसंद करने लगे। सेंथिल का मानना है कि साल 2030 तक इकोलाइन क्लोथिंग, कंपनी द्वारा बनाए जा रहे सभी रेशों को कपड़ों में बदल देगी।

एक टी-शर्ट, जैकेट बनाने में कितनी बोतलें लगती हैं?

pet बोतल रीसाइक्लिंग से टिकाऊ वस्त्रों बनाने की इस पूरी प्रोसेस सुनने में जितनी जटिल है लेकिन एक शर्ट और टी शर्ट बनाने में इतनी ही आसान है।

इस कंपनी के लिए आंध्र प्रदेश, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु और पुडुचेरी में से 50,000 जितने वर्कर कचरे में से पीईटी बोतलें इकट्ठा करते हैं। बाद में इन बोतलों में से काम आने वाली को अलग कर दिया जाता है और इनके ढक्कन तथा रैपर हटा दिए जाते हैं।

फिर उन्हें कुचलकर नमी कम करने के लिए सुखाए जाते है। सुखाने के बाद फ्लेक्स को उच्च तापमान पर पिघलाया जाता है और पिघले हुए फाइबर को ठंडा किया जाता है।

प्राप्त पॉलिएस्टर फाइबर को फैलाया जाता है और आखिरकार उसे धागे में परिवर्तित किया जाता है, जिसका उपयोग कपड़े बनाने और परिधानों को सिलने के लिए किया जाता है।

एक शर्ट बनाने में केवल 6 बोतलें लगती हैं और एक टी-शर्ट बनाने के लिए 8 पीईटी बोतलें लगती हैं। वहीं एक जैकेट बनाने में 20 और ब्लेजर बनाने में 30 पीईटी बोतलें लगती हैं।

पीएम मोदी ने पहनी कंपनी की जैकेट

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार इकोलाइन की जैकेट को हिरोशिमा में हुए जी-7 शिखर सम्मेलन में पहनी थी। उसके बाद से यह कंपनी लाइम लाइट में आ गई। इसके बाद मोदी ने फिर से एक बार इकोलाइन से चंदन सदरी जैकेट पहनी थी।

अमेरिका में व्हाइट हाउस की यात्रा के दौरान भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी नेइकोलाइन नटब्राउन जैकेट और सियान जैकेट को पहना था। उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पीईटी बोतलों से बनी एक मंदारिन रंग की जैकेट पहनी थी।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा पहनी गई यह जैकेट इस बात का समर्थन करती है कि पीईटी बोतलों को कपड़ों में पुनर्चक्रित करने के का यह प्रयास टेक्सटाइल इंडस्ट्री का रूप बदल सकती है।

निष्कर्ष

इस आर्टिकल में श्री रेंगा पॉलिमर और इकोलाइन की सफलता की कहानी (Shree Renga Polymers and Ecoline Success Story in Hindi) आपके साथ शेयर की है।

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